महान जी का वास्तविक नाम क्या है, इस बारे में विद्वानों में इसी तरह से मतभेद है जैसा कि बड़े साहित्यकारों के नामों के मामले में होता है। महान जी हमेशा यह सिद्ध करने में लगे रहते हैं कि वे कितने महान है! ऐसे में लोगों को लगा कि उनका नाम ही महान है, इसलिए वे उन्हें महान जी पुकारने लगे।

तो हमारे इन महान जी का भरोसा टेक्नोलॉजी से पूरी तरह से उठ गया था। और अब उनकी इच्छा थी कि जैसे उनका भरोसा टेक्नोलॉजी से उठा है, वैसे ही भगवान टेक्नोलॉजी को भी उठा ले। ऐसा नहीं है कि महान जी का टेक्नोलॉजी से मन अचानक ही भर गया था। उन्होंने टेक्नोलॉजी को पूरा अवसर दिया, और जब उन्हें लगा कि यह किसी काम की नहीं है, तभी उन्होंने उसे दिया गया अपना भरोसा वापस ले लिया।

मिसाल के तौर पर, जब उन्हें किसी ने बताया कि टेक्नोलॉजी से वे अपने लेखन की वर्तनी की ग़लतियाँ सुधार सकते हैं, तो उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ। उन्हें लगा कि यह ऐसा क्या कमाल है कि जो काम उनके अध्यापक आज तक नहीं कर पाए, वह टेक्नोलॉजी भला कैसे कर सकती है। बहरहाल, उन्होंने तय किया कि वे पहली फुरसत में ही इस सुविधा का लाभ उठाएँगे। तो उन्होंने इस सुविधा को आज़माया, लेकिन उन्होंने पाया कि उनकी ग़लतियाँ तो वैसी की वैसी बरकरार हैं। टेक्नोलॉजी उनमें किसी तरह का सुधार नहीं कर रही। अलबत्ता कुछ शब्दों के लिए कुछ लाल लहरदार लाइनें ज़रूर आ जाती हैं। उन्हें तो पहले भी इस बात पर भरोसा नहीं था कि टेक्नॉलॉजी वर्तनी को सुधार सकती है, और वे समझ गए कि किसी ने उन्हें मूर्ख बनाया है।

टाइप करते समय भी महान जी को बहुत परेशानी होती थी। वे लिखना चाहते थे - लकड़ी, और न जाने किस प्रक्रिया से टाइप हो जाता था - लड़की। वे लिखना चाहते थे - भालू, और सामने दिखाई देता था - आलू। यह सब चमत्कार देखकर, उन्होंने खुद टाइप करने का विचार त्याग दिया था, और इसके लिए वे पहले की तरह टाइपिस्ट पर निर्भर हो गए। फिर अचानक उन्हें पता चला कि अब कीबोर्ड से टाइप करने के बजाय, बोलकर भी टाइप किया जा सकता है। अब बोलने में तो उनका कोई सानी नहीं था। उन्हें कभी भी बोलने के लिए कहने की ज़रूरत नहीं पड़ती थी, बल्कि उन्हें तो चुप होने के लिए कहना पड़ता था। इसलिए उन्हें लगा कि यह सुविधा तो ख़ास तौर से उन्हीं को ध्यान में रखकर बनाई गई है। तो उन्होंने पूरी तरह सीखने के बाद इस सुविधा का भी लाभ उठाने का फ़ैसला किया। लेकिन यहाँ भी टेक्नोलॉजी उन्हें धोखा दे गई। उन्होंने एक महिला को बोलकर संदेश लिखा कि हम तो आपके खादिम हैं, लेकिन वहाँ चला गया कि हम तो आपके खाविंद हैं। दूसरी महिला को उन्होंने लिखा कि आपको पढ़ना चाहता हूँ, लेकिन टेक्नोलॉजी की कृपा से वहाँ केवल यह गया कि मैं आपको चाहता हूँ। सामने नहीं थे, इसलिए महान जी पिटने से तो बच गए, लेकिन शर्मिंदगी ज़रूर हुई, क्योंकि दोनों महिलाओं में इस बात को सार्वजनिक कर दिया। अलबत्ता यह पता नहीं चल पाया कि इसे सार्वजनिक करके वे अपना मूल्य बढ़ाना चाहती थीं, या महान जी का मूल्य गिराना चाहती थीं। खैर, महान जी समझ गए कि इस मामले में भी उन्हें मूर्ख बनाया गया है।

इनके अलावा भी महान जी ने टेक्नोलॉजी के द्वारा बहुत सारे काम करने चाहे, जैसे लेख की फ़ोटो लेना जो हमेशा टेढ़ी-मेढ़ी ही आती थी चाहे फ़ोन को कितना ही ऊपर नीचे कर लो (वे नहीं समझ पाए कि इसके लिए क़ागज़ को सीधा करने की ज़रूरत थी), व्हाट्सऐप से अपनी रचना भेजना जो कभी भी पूरी नहीं पहुँचती थी, अपनी रचनाओं को इकट्ठा करके एक फ़ोल्डर में रखना जो कभी भी दोबारा नहीं मिल पाती थीं, वे कालजयी रचना टाइप करके सेव करते थे लेकिन वह फ़ाइल खाली मिलती थी, ईमेल वे भेजते किसी को थे और मिल वह किसी और को जाती थी, वे याद करके ईमेल के साथ फ़ाइल संलग्न करते थे, लेकिन गंतव्य तक पहुँचते-पहुँचते वह बीच में ही कहीं गिर जाती थी, आदि-आदि।

इस सब चीज़ों को तो महान जी ने बर्दाश्त कर ही लिया था, लेकिन इस बार तो इंतहा ही हो गई। करने भगवान के ऐसे हुए कि उन्हें उनके एक प्रकाशक मित्र ने एलेक्सा भेंट कर दी। यह उन्हें बहुत पसंद आई, क्योंकि यह उनके बहुत सारे सवालों के जवाब दे देती थी, जैसे - आज का दिन क्या है, बाहर तापमान क्या है, भारत की राजधानी क्या है, आदि। इसके अलावा यह उन्हें उनके काम भी याद दिलवा दिया करती थी, जैसे उन्हें कब अपनी कहानी लिखनी है, कब उन्हें अपनी कविता भेजनी है, कब उन्हें प्रकाशक से रॉयल्टी के बारे में तगादा करना है, कब उन्हें फ़ेसबुक पर अपनी फोटो बदलनी है, कब उन्हें पुरस्कार के लिए जोड़-तोड़ करनी है, वगैरह-वगैरह।

महान जी ने साहित्य के क्षेत्र में भरपूर योगदान किया था, लेकिन उन्होंने देखा था कि यह क्षेत्र प्रतिभा का सम्मान नहीं करता। वे रोज़-रोज़ देखा करते कि उनसे कम प्रतिभावान, उनसे कम योग्य, उनसे कम लिखने वाले, उनसे कम विधाओं में लिखने वाले लोगों को पुरस्कार मिलते रहते हैं, सम्मान मिलते रहते हैं, उन पर चर्चा होती रहती है, वे पाठ्यक्रमों में लगते रहते हैं, उन पर शोध होता रहता है। लेकिन साहित्य का क्षेत्र महान जी के साथ हमेशा अन्याय ही करता रहा है। कोई भी नहीं कहता कि महान जी नाम के ही नहीं सचमुच के भी में महान साहित्यकार हैं।

अब उन्हें लगा कि शायद एलेक्सा इसमें उनकी मदद कर सकती है। तो एक दिन उन्होंने स्नान आदि करके, पूजा-पाठ करने, और एलेक्सा को भेंट-पूजा चढ़ाने के बाद, शुद्ध और पवित्र मन से एलेक्सा को सामने रखकर पूछा कि हिंदी का महान साहित्यकार कौन है? महान जी को पूरा विश्वास था कि क्योंकि एलेक्सा उनके पास है, उनकी अपनी है, तो निश्चित रूप से वह इस प्रश्न के उत्तर में महान जी का ही नाम लेगी। लेकिन देखिए एलेक्सा ने भी उन्हें धोखा दे दिया, और वह कबीर, सूर, तुलसी, भारतेंदु, प्रेमचंद, अज्ञेय वगैरह के नाम गिनाने लगी। महान जी ने ठंडे दिमाग़ से सोचा, तो उन्हें समझ में आया कि उनका प्रश्न ठीक से नहीं बना है, इसलिए एलेक्सा को जवाब देने में परेशानी हो रही है। तो उन्होंने प्रश्न को सीधा करके पूछा - क्या महान जी हिंदी साहित्य के महान साहित्यकार हैं? मोहन जी को पूरा विश्वास था कि इस बार तो एलेक्सा किसी भी तरह से बच नहीं सकती हो, और उसे सही यानी उनके मन-मुताबिक जवाब देना ही होगा। वे मुदित मन से जवाब का इंतज़ार कर रहे थे, लेकिन देखिए कि एलेक्सा ने इस बार भी उन्हें धोखा दे दिया और जवाब दिया - मुझे नहीं मालूम।

बस फिर क्या था टेक्नोलॉजी से महान जी का भरोसा हमेशा-हमेशा के लिए उठ गया। उन्होंने एलेक्सा को उठाकर पटका तो नहीं, जैसा कि वे अपने विरोधी साहित्यकारों को करने की इच्छा रखते हैं, लेकिन उन्होंने उसे तिलांजलि दे दी और अपने कमरे से बाहर निकाल दिया, और यह शेर गुनगुनाते हुए टेक्नोलॉजी को पूरी तरह से खारिज कर दिया - बड़ा शोर सुनते थे पहलू में दिल का। जो चीरा तो इक क़तरा-ए-ख़ूँ न निकला।

-राजेशकुमार